नारी जीवन की गाथाओं का वर्णन अनादि काल से चला आ रहा है। इस धरती पर सीता, राधा, सावित्री और मीरा जैसी महान नारियों ने जन्म लिया, जिन्होंने ने जीवन में अपार कष्ट सहते हुए भी अपने कर्तव्यों को पूरा किया है, फिर भी शायद अभी भी उस नारी को वह स्थान नही प्राप्त हो पाया है जिसकी वह हकदार है।
हमनें नारियों के उन बलिदानों को भुला दिया है, जो उसने किये है। हम नारी को अपराजिता के नाम से पुकारते है लेकिन कभी भी हमने उसे जीत का कोई अहसास नही होने दिया है। हम समाज में नए-नए परिवर्तन कर रहें है लेकिन नारियों के प्रति हमारी मानसिकताओं में परिवर्तन नही हो पा रहे है। अब हमें बदलने की जरूरत है, नारियों के सम्मान के लिए आगे कदम उठाने की जरूरत है जिससे वह सबके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके। हम अपनी कविताओं के माध्यम से आपको नारियों के महान गुणों और गाथाओं से अवगत कराना चाहते है। आपके समक्ष Poem on Women's Day in Hindi कुछ शेयर करते है।
हमनें नारियों के उन बलिदानों को भुला दिया है, जो उसने किये है। हम नारी को अपराजिता के नाम से पुकारते है लेकिन कभी भी हमने उसे जीत का कोई अहसास नही होने दिया है। हम समाज में नए-नए परिवर्तन कर रहें है लेकिन नारियों के प्रति हमारी मानसिकताओं में परिवर्तन नही हो पा रहे है। अब हमें बदलने की जरूरत है, नारियों के सम्मान के लिए आगे कदम उठाने की जरूरत है जिससे वह सबके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके। हम अपनी कविताओं के माध्यम से आपको नारियों के महान गुणों और गाथाओं से अवगत कराना चाहते है। आपके समक्ष Poem on Women's Day in Hindi कुछ शेयर करते है।
महिला दिवस पर कविताएँ | Poem on Women's Day in Hindi
Hindi Poem on Women |
Poem on Women's Day in Hindi
केवल नारी नही हूँ मैं
केवल नारी नही हूँ मैं,
धरती पर जीवन का आधार हूँ मैं।
डूबती हुई नाव नही,
पार ले जाये सबको वह पतवार हूँ मैं।
बंद पिंजरे की चिड़िया नही हूँ मैं,
जो आज़ादी को भूल गयी है।
पंख मेरे भी है अरमानों के,
जिनको फैलाना जान गई हूँ मैं।
अब अबला नही हूँ मैं,
भय को जीतने वाली निर्भया बन गयी हूँ मैं।
नारी मैं भोग्या नही,
एक नई पहचान लेकर भाग्या बन गयी हूँ मैं।
नारी मैं केवल नारी नही,
उगते हुए सूरज की पहली किरण बन गयी हूँ मैं।
एक नए युग का आरंभ कर,
नव भारती बन गयी हूँ मैं।
धरती पर जीवन का आधार हूँ मैं।
डूबती हुई नाव नही,
पार ले जाये सबको वह पतवार हूँ मैं।
बंद पिंजरे की चिड़िया नही हूँ मैं,
जो आज़ादी को भूल गयी है।
पंख मेरे भी है अरमानों के,
जिनको फैलाना जान गई हूँ मैं।
अब अबला नही हूँ मैं,
भय को जीतने वाली निर्भया बन गयी हूँ मैं।
नारी मैं भोग्या नही,
एक नई पहचान लेकर भाग्या बन गयी हूँ मैं।
नारी मैं केवल नारी नही,
उगते हुए सूरज की पहली किरण बन गयी हूँ मैं।
एक नए युग का आरंभ कर,
नव भारती बन गयी हूँ मैं।
Written by- Nidhi Agarwal
आज का युग परिवर्तन का युग है और भारतीय नारियों में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखा जा सकता है। आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही है। आज की नारी स्वतंत्र नारी है। उसने समाज व राष्ट्र को यह सिद्ध कर दिखाया है कि शक्ति अथवा क्षमता की दृष्टि से वो भी पुरुषों से किसी भी भाँति कम नहीं है। ये नारी महान है। आज इसी नारी की शक्ति को समर्पित कुछ पंक्तियाँ, महिला दिवस पर कविताओं के माध्यम से हम आपके समक्ष शेयर करते है।
हे नारी! तू महान है
Mahila Diwas Par Kavita
हे नारी! तू महान है
हे नारी! तू महान है कितनी?
तू है करुणा का सागर,
तू है ममता की गागर।
नही लेती तू कभी कुछ,
जीवन पर्यंत बस देती ही रहती।
नही जान पाता तेरा दुःख कोई,
नही समझता तुझको कोई।
फिर भी थोड़ा प्रेम पाने को, प्रिय से,
अपना सब कुछ अर्पण कर देती।
नारी तुम ममता की मूरत हो,
एक पुरुष की पूरक हो।
लेकिन बढ़ जाता तेरा दुःख अधिक,
लेती रण चंडी का रूप तब हो।
पल भर में विनाश सब कर देती,
हे नारी! तू महान है।
तू है करुणा का सागर,
तू है ममता की गागर।
नही लेती तू कभी कुछ,
जीवन पर्यंत बस देती ही रहती।
नही जान पाता तेरा दुःख कोई,
नही समझता तुझको कोई।
फिर भी थोड़ा प्रेम पाने को, प्रिय से,
अपना सब कुछ अर्पण कर देती।
नारी तुम ममता की मूरत हो,
एक पुरुष की पूरक हो।
लेकिन बढ़ जाता तेरा दुःख अधिक,
लेती रण चंडी का रूप तब हो।
पल भर में विनाश सब कर देती,
हे नारी! तू महान है।
Written by- Nidhi Agarwal
यदि हम कुछ देर इतिहास की बात करें तो देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, रानी लक्ष्मीबाई आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग संसार में अपना नाम रौशन किया। अपने दृण-संकल्प के बल पर पूरे भारत व विश्व को प्रभावित किया। जैसे इन महिलाओं ने अपनी शौरता और वीरता से पूरे समाज को सुधार डाला व अपना हक प्राप्त करा, वैसे आज की महिलाएं अपना हक प्राप्ति हेतु कभी शांत न बैठे, उठे और अपने हक के लिए लड़े और अपना लक्षय प्राप्त करें, क्योंकि हम अब कल की नारी नहीं है हम आधुनिक नारी है। एक कविता आधुनिक नारी हूँ मैं, हम अपने Mahila Diwas Par Kavitao के संग्रह से आपके समक्ष शेयर करते है।
Poem on Women's Day in Hindi
आधुनिक नारी हूँ मैं
आधुनिक नारी हूँ मैं।
इस पुरुष प्रधान समाज में भी,
सब पर भारी हूँ मैं,
आधुनिक नारी हूँ मैं।
अपने अधिकारों के लिए लड़ती,
संघर्षों में जीवन व्यतीत करती।
नही हार मानूँगी कभी,
क्योंकि बेचारी नहीं हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
प्रेम की भावना है हृदय में,
ममता की मूरत कहलाती हूँ।
सबको जीवन देने वाली,
ऐसी संस्कारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
आँचल में जिसके फूल है खिलते,
जीवन की बगिया महकाती हूँ।
जिसकी डाली में झूलेगा आने वाला कल,
ऐसे पौधों की क्यारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
जीवन पर्यंत देती रहती,
हर दुःख सह जाती हूँ।
प्रेम मिले, सम्मान मिले,
हाँ, इसकी तो अधिकारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
कभी मृद-अमृत की हाला,
तो कभी बन जाती ज्वाला हूँ।
बुझ पाएगी न जिसकी आग,
ऐसी चिंगारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
इस पुरुष प्रधान समाज में भी,
सब पर भारी हूँ मैं,
आधुनिक नारी हूँ मैं।
अपने अधिकारों के लिए लड़ती,
संघर्षों में जीवन व्यतीत करती।
नही हार मानूँगी कभी,
क्योंकि बेचारी नहीं हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
प्रेम की भावना है हृदय में,
ममता की मूरत कहलाती हूँ।
सबको जीवन देने वाली,
ऐसी संस्कारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
आँचल में जिसके फूल है खिलते,
जीवन की बगिया महकाती हूँ।
जिसकी डाली में झूलेगा आने वाला कल,
ऐसे पौधों की क्यारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
जीवन पर्यंत देती रहती,
हर दुःख सह जाती हूँ।
प्रेम मिले, सम्मान मिले,
हाँ, इसकी तो अधिकारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
कभी मृद-अमृत की हाला,
तो कभी बन जाती ज्वाला हूँ।
बुझ पाएगी न जिसकी आग,
ऐसी चिंगारी हूँ मैं।
आधुनिक नारी हूँ मैं।
Written By- Nidhi Agarwal
निःसंदेह महिलाओं की वर्तमान दशा में निरंतर सुधार देखते हुए, सारा श्रेय राष्ट्र की प्रगति को जाता है। वह दिन दूर नही जब नारी के इसी प्रयासों से, हमारा देश विश्व के अन्य अग्रणी देशों में से एक होगा। जिस प्रकार से महिलाएँ आज के समय में, आदमियों से एक कदम आगे निकल रही है, और देश की प्रगति में अपना योगदान दे रही है। उनका यह अद्भुत प्रयास काबिले तारीफ़ है। पाठकों हम आपसे साझा करते है महिला सशक्तिकरण कविता, जिसे पढ़कर आपको और ज्यादा महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना जाग्रत होगी।
Women's Day Par Kavita
महिला सशक्तिकरण
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।
नही बंधना मुझको,
रीति-रिवाजों की जंजीरों में।
लिखना है मुझको तो कामयाबी बस,
अपनी किस्मत की लकीरों में।
पंखों को फैलाकर अपने,
मुझे नापना पूरा आसमान है।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।
मुझको तो बस इतना है कहना,
अब और नही कुछ भी है सहना।
नही चाहिए मुझे कोई गहना,
मुझको तो बस अपने दम पर है रहना।
करके पूरे अपने सपने,
रचना एक नया इतिहास है।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।
हर उस बेड़ी को तोड़कर,
हर परीक्षा को पार कर,
अपने हर डर का नाश कर,
नई मंजिलों से नाता जोड़कर,
जीवन में अपने भरना उमंग और उल्लास है।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।
क्यों मैं रहूँ सिर्फ घर तक सीमित,
और चुकाऊँ अपने ख्वाबों की कीमत।
क्यों कहलाऊँ मैं अबला,
जब अंदर मेरे बल है असीमित।
बनकर सबला अब तो मुझको,
लेना अपना अधिकार है।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।
Written By-Nidhi Agarwal
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EDITED BY- Somil Agarwal
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