'भ्रष्टाचार' यानी ऐसा कार्य जो सिर्फ अपने लाभ सिद्धि की कामना के लिए समाज भर के नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर किया गया हो। आज का समाज ढेरों कुरूतियों व विसंगतियों से भरा पड़ा है। आज भ्रष्टाचार पूरे देश को खोखला करता जा रहा है। हम कह सकते है कि एक भ्रष्ट व्यक्ति पूरे देश की अर्थव्यवस्ता को हिला सकता है। भारत जैसे देश में ऐसे व्यक्ति ढेरों है जिनका उदाहरण हम सबके समक्ष निकल कर आया भी है। आज भ्रष्टाचार हमारे चारों तरफ बहुत तेज़ी से अपने पैर पसार रहा है और अगर इसे रोका नही गया, तो यह विकराल रूप धारण कर हम सबकी ज़िन्दगी में बहुत गहरा असर कर जाएगा।
आज हम भ्रष्टाचार पर अपने विचार रखते हुए आपके समक्ष शेयर करते है कुछ भ्रष्टाचार पर कविताएँ, जिससे कि इन कविताओं के माध्यम से हम सबके मन में साकार विचार उत्पन्न हों सकें और हम सब भ्रष्टाचार जैसी कुरूतियों से सदा दूर रह सकें।
भ्रष्टाचार पर कविताएँ | Poem on Corruption in Hindi
Poem on Corruption in Hindi |
Poem on Corruption in Hindi
भ्रष्टाचार
ये 'भ्रष्टाचार' कोई सामाजिक कुरीति नही,
ये है स्वयं के मस्तिष्क का,
एक मानसिक विकार,
जिसको स्वयं ही मनुष्य जन्म देता है,
अपने आचार और विचारों में,
कर्म और व्यवहारों में,
केवल स्वयं के लाभ के लिए,
दुनिया की दौड़ में स्वयं को ऊँचा रखने के लिए,
अपनी स्वस्थ मानसिकता को गिरा कर,
करता रहता है मनुष्य अत्याचार।
- निधि अग्रवाल
भ्रष्टाचार पर कविताएँ
'भ्रष्टाचार' मनुष्यता का हास
बढ़ रहा चारों तरफ ये भृष्टाचार,
लूट, खसूट और अनाचार,
हो रही नादान जनता,
शोषण का शिकार।
हर तरफ है घोटाले,
और हो रही सामानों की काला बाजारी,
गरीब किसान मर रहा,
और नेता मना रहे ख़ुशियों की दीवाली।
मंहगाई की ऐसी है मार,
बेचारा गरीब हो रहा परेशान,
अमीर खा रहे दूध मलाई,
और गरीब रोटी के एक-एक दुकड़े का मोहताज।
कमजोरों का हो रहा शोषण,
स्त्रियों का घट रहा मान,
रोज हो रहे बलात्कार,
जाने कहाँ गया उनका सम्मान।
स्वयं के हित में मानव,
कर रहा अपनी उच्च मानसिकता का हास,
मानवता के पथ से हटकर,
कर रहा स्वयं की मनुष्यता का हास।
- Nidhi Agarwal
Corruption Par Kavita | Bhrasta Chaar Par Kavita
भ्रष्टाचार का करो बहिष्कार
भ्रष्टाचार का करो बहिष्कार,
न सहन करो स्वयं पर,
और न इस समाज पर,
अनाचार और अत्याचार।
जाग्रत बनो,
कर चिंतन, और जतन से,
लड़ो स्वयं के साथ इस समाज के लिए भी,
मिल सके जिससे तुमको अपने अधिकार।
न बढ़ने दो झूठ को,
सत्य का करो तुम अनुशरण,
स्वयं को बदलो,
और लाओ समाज में भी बदलाव।
बदलो अपनी मानसिकताओं को,
मानव हो, मानवता को अपनाओ,
कुछ करो तुम भी विचार,
हो सके एक नई विचारधारा का जिससे प्रचार और प्रसार।
- निधि अग्रवाल
हमें आशा है कि आप सबको यह Poems on Corruption in Hindi अवश्य पसंद आयी होंगी। यदि अच्छी लगी हो तो इन्हें शेयर अवश्य करदें। आपका एक शेयर हमें मोटीवेट करेगा और भ्रष्ट लोगों को जागरूक करने में सहायता प्रदान करेगा।
EDITED BY- Somil Agarwal
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