दोस्तों, वर्तमान समय में हम सभी व्यक्तियों को अनगिनत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और इन समस्यायों में महंगाई की समस्या के कारण लोगों को बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। 'महंगाई' किसी वस्तु या कोई सेवाओं में समय के साथ होने वाली वृद्धि को कहते है। इस मंहगाई के कारण एक सामान्य वर्ग का व्यक्ति भी अपनी जरूरतों को पूरा नही कर पा रहा है और ऐसे व्यक्ति जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है उनके सामने तो बहुत ही बड़ी समस्या खड़ी है। गरीब इंसान मंहगाई के कारण भूखों मर रहा है। किसान जो खुद उत्पादन करते है वो अपनी चीजों का उपभोग नही कर पा रहे है। उच्च आर्थिक व्यक्तियों के जीवन में इसका कोई असर नही है लेकिन एक गरीब व्यक्ति के जीवन को इस मंहगाई ने बहुत ही खराब कर दिया है, गरीब इंसान अपने शौक तो क्या अपनी रोजी-रोटी की भी पूर्ति नही कर पा रहे है।
आज हम आपके समक्ष शेयर करते है कुछ महंगाई पर कविताएँ जिससे कि आप सब इस सामाजिक समस्या के बारे में कुछ जानकारी हांसिल कर सकें।
महंगाई पर कविताएँ | Poem on Inflation in Hindi
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Poem on Inflation in Hindi |
Poem on Inflation in Hindi
हाय रे महंगाई
हाय रे मंहगाई !
तूने कैसी आफत ढाई,
गरीबों के जीवन को तूने तो,
बना दिया दुःख दायी।
खीर-कचौड़ी वो क्या जाने,
वो क्या जाने मलाई,
घर में अन्न का दाना नही उनके,
ऐसी है गरीबी छाई।
कुपोषण ने अब तो उनको,
अपने चंगुल में है घेरा,
जीवन की जद्दोजहत में,
बची केवल तन्हाई।
मंहगाई के रंग में रंगी,
एक नई बीमारी है आयी,
कहते है जिसको कोरोना,
जो अपने संग मौत है लाई।
मंहगाई के जोर में,
बेरोजगारी भी है हरतरफ छाई,
हर तरफ कोहराम मचा,
नही कोई सुनवाई।
हाय रे मंहगाई !
तूने कैसी आफत ढाई,
गरीबों के जीवन को तूने तो,
बना दिया दुःख दायी।
- Nidhi Agarwal
महंगाई पर कविता | Mehangai Par Kavita
महंगाई जी
मंहगाई जी, जब-जब तुम आती हो,
हम सबको बहुत सताती हो,
हमारी खून-पसीने की कमाई को,
तुम पल भर में उड़ा ले जाती हो।
तुम तो दिन दोगुनी और रात चौगनी होकर,
मोटी-ताजी हो जाती हो,
हमको तो तुम चूस-चूस कर,
हमारा सारा खून पी जाती हो।
ओ रे मंहगाई थोड़ी मेरी बात तुम मान लो,
क्यों नकसे इतना दिखलाती हो,
अपनी सेहत का कुछ तो करो ख्याल,
तुम जिम क्यों नही जाती हो।
मोटी सूरत लेकर तुम,
जहाँ देखो पहुँच जाती हो,
रोग लगाकर सबको अपना,
बस वहीं जम जाती हो।
हम भी कह-कह कर हार गए है,
पर तुम हो कि शर्म भी न खाती हो,
हमारी लाचारी का तुम,
दिन-रात फायदा उठाती हो।
मंहगाई तुम बहुत कठोर दिल की हो,
तभी तो दिन-रात सताती हो,
और हमारा पीछा छोड़कर,
जाने तुम क्यों नही जाती हो।
- निधि अग्रवाल
Mehangai Par Hasya Kavita in Hindi
महंगाई महारानी
जय जय जय मंहगाई महारानी,
थोड़ी तो हम पर करो मेहरबानी।
सारा जग तुमसे परेशान,
कुछ तो कृपा कर दो भवानी।
आयी हो जब से तुम मंहगाई,
कठिन हो गयी हमारी जिंदगानी।
स्वाद खो गया जीवन से हमारे,
बेस्वाद हो गयी हमारी जवानी।
भूल गए हम सारी पार्टी,
रह गयी बस रोजी रोटी की कहानी।
त्योहारों का रंग उड़ गया,
बस रह गयी केवल परेशानी।
कैसे कर रहे गुजारा हम,
तुमको भी होती होगी हैरानी।
कर जोड़ करते विनती हम,
है महारानी, है पटरानी।
थोड़ी कृपा कर दो हम पर तुम,
कब तक करोगी अपनी मनमानी।
- Nidhi Agarwal
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Deemyra
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