दोस्तों,आप जानते ही है, हमारा समाज कई कुरीतियों व विसंगतियों का शिकार रहा है जैसे बालविवाह, सतीप्रथा और दहेजप्रथा आदि। कुछ कुरीतियाँ काफी हद तक खत्म हो गयी है लेकिन दहेजप्रथा जैसी कुप्रथा से हमारा समाज अभी भी मुक्त नही हुआ है। इस दहेजप्रथा के कारण न जाने कितनी स्त्रियों का जीवन नरक बन गया है और न जाने कितनी इस दहेज की आग में जल चुकी है। ये दहेज जैसी कुप्रथा का अब अंत होना चाहिए। इसके लिए हम सभी को एक होकर जागरूक होना होगा। आज हम दहेज प्रथा पर कविताएँ के माध्यम से आपको जागरूक करने की आशा रखते है और आपसे निवेदन करते है कि आप समाज को भी इसके प्रति जागरूक करें।
दहेज प्रथा पर कविताएँ | Poem on Dowry System in Hindi
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Poem on Dowry System in Hindi |
Poem on Dowry System in Hindi
बंद करो दहेजप्रथा
बंद करो दहेजप्रथा,
नारी का न करो व्यापार,
स्वयं जिसे कहते तुम लक्ष्मी,
क्यों कर रहे फिर उसपर तुम अत्याचार।
दौलत के तराजू पर तौल के,
छीना तुमने उसका अधिकार,
नारी बिन जीवन है सुना,
थोड़ा तो करो विचार।
कभी संगनि, कभी भगिनी बन,
उसने लुटाया तुमपर प्यार,
दौलत के नशे में डूबे ऐ! मानव,
लूट लिया तुमने उसकी ख़ुशियों का संसार।
अब भी समय शेष है देखो,
करो स्वयं में जागरूकता का संचार,
कुरीतियों से ग्रसित समाज का,
तुम करो अब बहिष्कार।
त्यागो कुंठित सोच को अपनी ऐ! मानव,
करो परवर्तित अपना व्यवहार,
हो सके जिससे समाज में,
स्वस्थ मानसिकता का निर्माण।
बंद करो दहेजप्रथा,
नारी का न करो व्यापार,
स्वयं जिसे कहते तुम लक्ष्मी,
क्यों कर रहे फिर उसपर तुम अत्याचार।
- Nidhi Agarwal
Topics to Read: दहेज़ प्रथा पर निबंध | Essay on Dowry System in Hindi
दहेज प्रथा पर कविता
संस्कारों का दहेज
बेटी स्वयं में,
धन है प्रेम और संस्कारों का,
यूँ न करिये निरादर उसका,
दहेज़ के तराजू से मत तौलिए।
है एक माता-पिता की वो,
जीवन भर की पूँजी,
देकर आदर-सम्मान उसे,
उसका मान बढ़ाइए।
संकुचित मानसिकता,
और लालच को त्यागकर मन से बंधु,
जन-जन को जाग्रत कर,
एक शिक्षित समाज बनाइए।
देकर परिचय समझदारी का,
लीजिए संस्कारों का दहेज केवल,
इस धन के दहेज की कुप्रथा को,
समाज से दूर भगाइए।
- निधि अग्रवाल
Dahej Pratha Par Kavita
दहेज की आग
एक पिता,
अपनी बेटी के सम्मान के लिए,
उसके अभिमान के लिए,
जीवन पर्यंत,
जुटाता है जमा पूँजी,
करके स्वयं के शौक में कटौती,
बेटी के दहेज के लिए,
इस आस में,
कि उस नाजुक सी कली,
जिसको उसने रखा है हमेशा,
कड़ी धूप से बचा के,
अपने प्रेम की छाँव में,
बचपन से,
न पड़े एक भी छींटा,
'दहेज की आग' का कभी भी,
उसके जीवन में।
- Nidhi Agarwal
हमें आशा है कि आप सबको यह Poems on Dowry System in Hindi अवश्य पसंद आयी होंगी, यदि अच्छी लगी हो तो इन्हें अपने मित्रों व अन्य प्रियजनों संग साझा अवश्य करदें ताकि हमारा समाज इन कविताओं के माध्यम से थोड़ा जागरूक हो सके और हमारे समाज में उपस्थित इस दहेज जैसी कुप्रथा का विनाश हो सके।
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